Saturday 24 March 2018

पक्षाघात(Paralysis)

 🔶🔶 पक्षाघात(Paralysis) 🔶🔶
✍🏼पक्षाघात या लकवा में एक या उससे ज्यादा मांसपेशी समूह की मांसपेशियों सही तरीके से काम नही कर पाती है। पक्षाघात  रोग के कारण प्रभावित अंग की  संवेदन शक्ति खत्म जाती है या उस अंग या भाग को  चलना या फिरना या घुमाना असम्भव हो जाता है।
✍🏼लकवा बहुत ही खतरनाक रोग है। जिस अंग पर लकवा मारता है वह अंग बेकार हो जाता है। रोगी असहाय व कमजोर हो जाता है। उसे चलने-फिरने के लिए दूसरे का सहारा लेना पड़ता है, इसमें शरीर के अंग निष्क्रिय तथा चेतना शून्य हो जाते हैं। शरीर का हिलना डुलना मुश्किल हो जाता है।
            🔭 लकवा का कारण 🔭
✍🏼जब अचानक मस्तिष्क के किसी भाग में रक्त या खून की बहाव या आपूर्ति रुक जाती है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका या नस  फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है और खून का थक्का बन जाता है या मस्तिष्क में अचानक रक्तस्राव होने लगता है तो कहा जाता है कि आदमी को मस्तिष्क का दौरा पड़ गया है.
✍🏼शरीर की सभी पेशियों का नियंत्रण (Control ) केंद्रीय तंत्रिकाकेंद्र, मस्तिष्क और मेरुरज्जु की सहयोगी तंत्रिकाओं से होता है, जो पेशियों तक जाकर उनमें प्रविष्ट होती हैं. अत: स्पष्ट है कि मस्तिष्क से पेशी तक , और नियंत्रणकारी अक्ष के किसी भाग में या पेशी में पक्षाघात रोग हो जाने से पक्षाघात हो जाता  है. सामान्य रूप में चोट या  अचानक तेज दाब और नियंत्रणकारी अक्ष के किसी भाग में दाब आदि  किसी भी कारण से उत्पन्न अवरोध के फलस्वरूप  आंशिक या पूर्ण पक्षाघात होता है.
✍🏼शरीर के जिस अंग में खून उचित मात्रा में नहीं पहुंच पाता है वह अंग सुन हो जाता है। इसी को हम लकवा कहते हैं। इसके अलावा यह रोग रक्तचाप के बढ़ने, गुप्त स्थान पर अचानक चोट लगने, मानसिक कमजारी, नाड़ियों की कमजोरी, ज्यादा ठंडी चीजें खाने व ज्यादा वायु बनाने वाले खाद्य पदार्थों के खाने आदि से हो जाता है।

लकवा निम्न प्रकार से हो सकता है-
1- पूरे शरीर पर
2- आधे शरीर पर
3- मुंह पर होता है।
             🔹 लकवा के लक्षण 🔹
🔭इस रोग में पूरा शरीर, आधा शरीर व छोटी नसें सूख जाती हैं। खून  का संचार बंद हो जाता है। जिस भी अंग पर लकवा गिरता है, वह अंग बेकार हो जाता है। रोगी अपना अंग हिलाने-डुलाने में असमर्थ हो जता है। अगर लकवा मुँह पर गिरता है तो रोगी बोल नहीं पाता है। इसके अलावा आंख, कान व नाक भी रोग ग्रस्त तथा टेढे-मेढे हो जाते हैं। गरदन टेढ़ी हो जाती है और होंठ नीचे को लटक जाते हैं। चमड़ी को खरोचनें पर भी दर्द नहीं होता है। दांतों में भयानक दर्द शुरू हो जाता है। एक तरह से रोगी का पूरा शरीर कुरूप व बेकार हो जाता है

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