Wednesday 30 March 2016

जानिये योग से थायराइड का इलाज

परिचय-

          थायरॉयड गले का रोग है। थायरॉयड (अवटू) ग्रंथि स्वरयंत्र (आवाज यंत्र) के ठीक नीचे सांस की नली के अगल-बगल में बाहर की ओर होती है। थायरॉयड ग्रंथि के अन्दर से थायरोक्सिन (टी-4) और ट्रीआयोड थायरोक्सिन (टी-4) नामक हार्मोन्स बड़ी मात्रा में निकलते रहते हैं। इन दोनों हार्मोन्स का शरीर की चयापचयी (पाचनक्रिया) दर पर तेज प्रभाव पड़ता है। इसमें ऊतकों का निर्माण, ऊर्जा शक्ति का भंडारण, ऊतकों का मिलना और कोषों में उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग करने की क्षमता रहती है। साथ ही यह केलसीटोनिन नामक एक अन्य हार्मोन्स भी बाहर छोड़ता है, जो कैल्शियम की चयापचय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इससे निकलने वाले हार्मोन्स की कमी के कारण चयापचायी क्रिया सामान्य से 50 प्रतिशत कम हो जाती है, जबकि इससे निकलने वाले हारमोन्स में अधिकता होने से पाचनक्रिया (चयापचाय) सामान्य से 60 प्रतिशत अधिक हो जाती है। थायरॉयड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन्स का नियंत्रण पिट्युटरी ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन्स से होता है।
अवटु अति क्रियता (हाइपरथाइरोडिज्म)-
          थायरॉयड ग्रंथि से हार्मोन्स का अधिक मात्रा में निकलना नेत्रोत्सेधी गलगण्ड (गले में गांठ) या ग्रेव्ज डिसीज नामक रोग के कारण भी हो सकता है। यह रोग अधिकतर स्त्रियों में होता है। इस रोग का एक मुख्य लक्षण गलगण्ड या बढ़ी हुई थायरॉयड होता है। इसमें थायरॉयड ग्रंथि अपने वास्तविक आकार से दो तिहाई बढ़ जाती है। इस रोग के 2 अन्य लक्षण हैं-
  • इस रोग में आंखों के पिछले भाग में शोथ (सूजन) हो जाती है जिससे आंखें बाहर की ओर आ जाती हैं। इसे नेत्रोत्सेध कहते हैं।
  • असामान्य रूप से ऊंची चयापचयी दर। इस उच्च चयापचयी दर के विभिन्न प्रभाव पड़ते हैं। जिसमें नाड़ी की गति तेज होना, शरीर में उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) होना, असहनीय ताप होना (शरीर में गर्मी बढ़ जाना) तथा त्वचा पर लालिमा धब्बे होना आदि रोग उत्पन्न होता है। इसमें व्यक्ति का शारीरिक वजन कम होने लगता है तथा स्नायविक ऊर्जा अधिक हो जाती है, जिससे व्यक्ति में उत्तेजना उत्पन्न होती है और उसके हाथों में कंपन उत्पन्न होता है।
अवटु अल्प क्रियता (हाइपोथाइरोछिज्म)-
          थायरॉयड के हार्मोन्स का अल्पस्राव भ्रूण अवस्था, शैशवकाल या युवावस्था के दौरान होता है। इसे बौनापन तथा श्लेष्मशोथ (मिक्सीडीमा) कहा जाता है। बौनेपन के 2 सामान्य लक्षण हैं- बौनापन और मंदबुद्धि। इसमें यौन का मंद विकास तथा त्वचा पर पीलापन भी दिखाई देता है। वसा की सपाट गदि्दयों के कारण गोलाकार चेहरा, मोटी नाक, बड़ी, मोटी व बाहर निकली जीभ तथा उभरा हुआ पेट बौनेपन की विशेषताएं है। बौनेपन में शरीर का तापमान कम, हृदय की गति धीमी तथा आम सुस्ती भी देखने को मिलती है। बौनेपन की तरह ही श्लेष्माशोथ या मिक्सीडीमा रोग में भी हृदय की गति कम होना, शरीर का तापमान कम होना, ठंड के प्रति संवेदनशीलता (ठंड को जल्द महसूस करना), बाल व त्वचा का ठंडा होना, मांसपेशियां कमजोर होना, आम सुस्ती तथा वजन का बढ़ना आदि लक्षण मिलते हैं। हृदय की गति के अधिक समय तक कम रहने से हृदय को अधिक कार्य करना पड़ता है,  जिससे हृदय का आकार बढ़ जाता है। मिक्सीडीमा रोग पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होता है।
योग के द्वारा रोग की चिकित्सा-
          गले के इस रोग में प्रतिदिन योगक्रिया का अभ्यास करने से रोग में जल्द आराम मिलता है। इससे शारीरिक व मानसिक दोनों में लाभ होता है।
गर्दन के लिए योगक्रिया-
सर्वांगासन, मत्स्यासन, विपरीतकरणी मुद्रा, सूर्य नमस्कार, पवन मुक्तासन का अभ्यास करें।
अज्जयी और नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास करें।
अभ्यास का समय
योग का अभ्यास प्रतिदिन 20 मिनट करें।
बंध
इसमें जलंधर बंध का अभ्यास करें।
प्रेक्षा (मन का ध्यान)
अपने ध्यान को विशुद्धि चक्र पर केन्द्रित करें और मन में नीले रंग के कमल को अनुभव करें।
अनुप्रेक्षा (मन के विचार)
ध्यान लगाकर बैठे और सांस क्रिया करते हुए मन में विचार करें- ´´मेरी थायरॉयड ग्रंथि धीरे-धीरे ठीक हो रही है। थायरॉयड ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन्स समान हो रहा है तथा उसके बिगड़ने से उत्पन्न रोग ठीक हो रहे हैं।´´ इस तरह का मन में चिंतन करें।
यह रोग अधिकतर शरीर में आयोडीन की मात्रा कम होने से होता है, इसलिए भोजन में आयोडीन की मात्रा अधिक लें।
विशेष-
          योगक्रिया का अभ्यास योग चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही करें। आसन व प्राणायाम करने के बाद प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करें। प्रेक्षा ध्यान के लिए किसी आसन में बैठ जाएं और अपने मन में कल्पना करें कि कंठ मूल के पास स्थित विशुद्धि चक्र है, जहां नीले रंग का कमल का फूल है।

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